आदि काल से ही भारत भूमि पर भयंकर आक्रमण बाहर से होते रहें है, जिनमे भारतीय संस्कृति को समाप्त करने का हर सम्भव प्रयत्नों में कोई कमी नही छोड़ी. चाहे यवनो, पार्थवो व लुटेरे अरबी या तुर्की हमलावरों के आक्रमण या साम्राज्यवादी अंग्रेजो के, सभी ने भारतीय संस्कृति को समाप्त करने दौरान कितनी भारी संख्या में जनसंहार हुआ होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. नादिरशह व तैमुरलंग के खुनी कत्लेआम से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो.
इतने संघर्षो व हमलो के बावजुद भारतीय संस्कृति आज भी दुनिया में गौरवमयी रुप मेंदेखी जाती है. विश्व गुरु के रुप में जाना जाने वाला यह देश आज भी अन्य देशो की तुलना में आदर्श देश है. जहाँ इस आर्थीक युग में भी मर्यादयें जीवित है. इस संस्कृति के जीवित रहने कारणो में यदि हम गहराई में जाऐ तो पता चलता है कि इसको जीवित रखने के लिए लाखो वीरों ने अपने प्राणों की आहुती दी है. उन्ही के फलस्वरूप ही हम इस संस्कृति की गौरवमयी शाया में आज भी समुचित स्तर पर है.
अपनी इस संस्कृति की रक्षा करने में जिन महानवीरों ने अपना बलिदान दिया उनमें से कुछ का बिखरा बिखरा विवरण इतिहास में कुछ निष्पक्ष इतिहासकारों ने किया है. फिर भी अधिकांश का उल्लेख एकत्रित रुप में नही मिलता है. वैसे तो इस रक्षा समर में कई जातियो के वीर काम आए परन्तु प्रमुख भुमिका, नेत्रत्व व वीरता जिन वीरों की रही उनमें से अधिकांश गुर्जर जाति से थे. प्राचिन भारत का इतिहास देखें या वर्तमान भारत का, इस जाति के वीरों की संख्या मुख्य रही है.
इतने संघर्षो व हमलो के बावजुद भारतीय संस्कृति आज भी दुनिया में गौरवमयी रुप मेंदेखी जाती है. विश्व गुरु के रुप में जाना जाने वाला यह देश आज भी अन्य देशो की तुलना में आदर्श देश है. जहाँ इस आर्थीक युग में भी मर्यादयें जीवित है. इस संस्कृति के जीवित रहने कारणो में यदि हम गहराई में जाऐ तो पता चलता है कि इसको जीवित रखने के लिए लाखो वीरों ने अपने प्राणों की आहुती दी है. उन्ही के फलस्वरूप ही हम इस संस्कृति की गौरवमयी शाया में आज भी समुचित स्तर पर है.
अपनी इस संस्कृति की रक्षा करने में जिन महानवीरों ने अपना बलिदान दिया उनमें से कुछ का बिखरा बिखरा विवरण इतिहास में कुछ निष्पक्ष इतिहासकारों ने किया है. फिर भी अधिकांश का उल्लेख एकत्रित रुप में नही मिलता है. वैसे तो इस रक्षा समर में कई जातियो के वीर काम आए परन्तु प्रमुख भुमिका, नेत्रत्व व वीरता जिन वीरों की रही उनमें से अधिकांश गुर्जर जाति से थे. प्राचिन भारत का इतिहास देखें या वर्तमान भारत का, इस जाति के वीरों की संख्या मुख्य रही है.
जिन्होने अपने प्राणों बाजी लगा कर देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा की. देश की अखण्ड़ता के लिए इस जाति के वीर सदैव प्रय्रत्नशील रहे है.
गुर्जर वीरों ने प्राचिन काल में अपनी भारतीय संस्कृति का प्रसार स्वदेश की सीमाओ से बाहर अति सूदूर देशो में जा कर किया, जहाँ से लौट कर भारत, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत व मध्येशिया के विशाल भूखण्ड़ों को विजय कर के महान कुशान साम्रज्य स्थापित कर सुख स्म्रद्धि का युग प्रारम्भ किया. तत्पश्चात अपने साम्राट जनेन्द्र यशोधर्मा के नेत्रत्व में गुर्जर देश का निर्माण किया. धर्मान्ध अरब आक्रांताओं को 250 निरन्तर वर्षो तक स्वदेश से खदेड़ते हुए भारतीय धर्म व संस्कृति अभुतपुर्व सफलता के साथ रक्षा करते हुए महान गुर्जर प्रतिहार साम्रज्य की स्थापित किया. फिर बाद में अपने सोलंकी गुर्जर साम्राटो के नेत्रत्व में सदियो तक तुर्क आक्रांताओं को खदेड़ कर स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्य न्यौछावर कर दिया. परन्तु सत्ता विहिन होकर भी सदा विदेशी आक्रांताओं से टकराती रही और अन्त में ब्रिटिश साम्राज्यवाद में सन 1822 से 1857 तक निरन्तर टकरा कर अपना जन, धन, वैभव सब स्वाहा कर अति दीन अवस्था को प्राप्त हुई.
गुर्जर वीरों ने प्राचिन काल में अपनी भारतीय संस्कृति का प्रसार स्वदेश की सीमाओ से बाहर अति सूदूर देशो में जा कर किया, जहाँ से लौट कर भारत, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत व मध्येशिया के विशाल भूखण्ड़ों को विजय कर के महान कुशान साम्रज्य स्थापित कर सुख स्म्रद्धि का युग प्रारम्भ किया. तत्पश्चात अपने साम्राट जनेन्द्र यशोधर्मा के नेत्रत्व में गुर्जर देश का निर्माण किया. धर्मान्ध अरब आक्रांताओं को 250 निरन्तर वर्षो तक स्वदेश से खदेड़ते हुए भारतीय धर्म व संस्कृति अभुतपुर्व सफलता के साथ रक्षा करते हुए महान गुर्जर प्रतिहार साम्रज्य की स्थापित किया. फिर बाद में अपने सोलंकी गुर्जर साम्राटो के नेत्रत्व में सदियो तक तुर्क आक्रांताओं को खदेड़ कर स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्य न्यौछावर कर दिया. परन्तु सत्ता विहिन होकर भी सदा विदेशी आक्रांताओं से टकराती रही और अन्त में ब्रिटिश साम्राज्यवाद में सन 1822 से 1857 तक निरन्तर टकरा कर अपना जन, धन, वैभव सब स्वाहा कर अति दीन अवस्था को प्राप्त हुई.
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