पन्ना
दाई गुर्जर खीची कबीले की गुर्जर महिला (क्षत्रिय) थी. वह चित्तौड़गढ़
के राजा राणा साँगा
( संग्राम सिंह) , राणा संग्राम सिंह का एक लड़का था राजकुमार उदयसिंह, राजकुमार उदयसिंह की देख रेख आदि की जिम्मेदारी पन्ना दाई पर थी (पन्ना धाय उस समय नन्हें राजकुमार उदयसिंह की धाय मां थी और उनके लालन पालन में व्यस्त थी) राणा संग्राम सिंह की बाबर के खिलाफ खनुआ की लड़ाई 1527 में में मृत्यु हो गई थी. राणा संग्राम सिंह की मृत्यु के उपरांत
उनके छोटे भाई बनवीर को राज्य और राजकुमार की देख रेख की जिम्मेदारी दी गयी लेकिन बनवीर के दिल में और सिंहासन हड़पना की कामना आ गयी और उसने राजकुमार उदय सिंह को मारने की योजना बनाई, | पन्ना धाय का भी एक पुत्र था
जो लगभग उम्र में उदयसिंहके जितना ही था | पन्ना धाय एक बहुत ही स्वाभिमानी, देशभक्त और राणा का एहसान मानने वाली महिला थी जब पन्ना धाय को बनवीर के गंदे नापाक इरादों का पता चला तो उसने नन्हें बालक उदयसिंह की जगह अपने को पुत्र सुला दिया तभी बनवीर नें नंगी तलवार लिये कक्ष में प्रवेश किया और पन्नाधाय से पूछा की कहां है उदयसिंह तो पन्ना धाय नें सिर्फ इशारा किया और तत्काल बनवीर नें पन्ना के को पुत्र मौत के घाट उतार दिया, वह समझ रहा था की मेनें मेवाड के होने वाले राजा उदयसिंह को मार डाला है पर हकीहत में पन्ना धाय नें अपने पुत्र की कुर्बानी दे दी थी और मेवाड राजवंश के चिराग को बचा लिया था| एक गुप्त रास्ते से पन्नाधाय नें बालक उदयसिंह को झूठे पत्तल से भरे टोकरे में रखवाकर किसी के विश्वासपात्र हाथों महल से बाहर सुरक्षित जगह पहुंचा दिया | बाद में उदय सिंह के युवा पर उसने अपने चाचा बनवीर को हराया और चितोड़ का राजा बन गया और बाद में अपने नाम से उदयपुर शहर की स्थापना की.
कोई महिला या नारी अपने राजा के पु्त्र की रक्षा करने के लिये इतना बडा बलिदान करे ये बहुत बडी बात है और पन्ना धाय एक बहुत बडा उदाहरण है नारी शक्ति के त्याग और बलिदान का | पन्ना नें अपने का पुत्र बलिदान करते हुए राणा के पु्त्र के जीवन को बचा लिया था और आज भी वह अपने इस अनोखे बलिदान के लिये जानी जाती है | पन्ना धाय अमर है| आज भी हम पन्ना धाय के त्याग और बलिदान का उधाहरण पेश करते है आज भी पन्ना धाय के नाम से बहुत सी योजनाये और पुरस्कार चल रहे है हम पन्ना धाय गुर्जर के त्याग और बलिदान को सलाम करते है जिनके त्याग और बलिदान ने विश्व में भारत देशऔर गुर्जर समाज का नाम रोशन किया है पन्ना धाय पुरस्कार एक राष्ट्रीय पुरस्कार है. यह सम्मान पन्ना धाय को समर्पित है
हिन्दी के लेखक सत्य कवि नारायण गौयंका नें इस पूरी घटना पर एक बहुत अच्छी रचना की है वह
पेश हैः |
चल पडा दुष्ट बनवीर क्रूर, जैसे कलयुग का कंस चला
राणा सांगा के, कुंभा के, कुल को करने निर्वंश चला | |
उस ओर महल में पन्ना के कानों में एसी भनक पडी
वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पडी | |
त्तक्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर
स्वामी के हित में बलि दूंगी, अपने प्राणो से भी बढ़ कर | |
धन्ना नाई की कुन्डी में, झटपट राणा को सुला दिया
उपर झूठे पत्तल रखकर, यों छिपा महल से पार किया | |
फिर अपने नन्हे मुन्ने को झट गुदडी में से उठा लिया
राजसी वसन भूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया | |
इतने में ही सुन पडी गरज, है उदय कहां, युवराज कहां
शोणित प्यासी तलवार लिये, देका कातिल था वहां खडा | |
पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर
सोया प्राणों का प्रण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर | |
छिन में बिजली सी कडक उठी, जालिम की उंची खडग उठी
मां मां मां मां की चीख उठी, नन्ही सी काया तडप उठी | |
शोणित से सनी सिसक निकली, लोहू पी नागन शांत हुई
इक नन्हा जीवन दीप बुझा, इका गाथा करूण दुखांत हुई | |
जबसे धरती पर मां जनमी, जब से मां नें बेटे जनमें
एसी मिसाल कुर्बानी की, देखी ना गई जन जीवन में | |
तू पूण्यमयी, तू धर्ममयी, तू त्याग तपस्या की देवी
धरती के सब हीरे पन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवीं | |
तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गई
तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर ह्दय लुटाना सिखा गई | |
राणा सांगा के, कुंभा के, कुल को करने निर्वंश चला | |
उस ओर महल में पन्ना के कानों में एसी भनक पडी
वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पडी | |
त्तक्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर
स्वामी के हित में बलि दूंगी, अपने प्राणो से भी बढ़ कर | |
धन्ना नाई की कुन्डी में, झटपट राणा को सुला दिया
उपर झूठे पत्तल रखकर, यों छिपा महल से पार किया | |
फिर अपने नन्हे मुन्ने को झट गुदडी में से उठा लिया
राजसी वसन भूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया | |
इतने में ही सुन पडी गरज, है उदय कहां, युवराज कहां
शोणित प्यासी तलवार लिये, देका कातिल था वहां खडा | |
पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर
सोया प्राणों का प्रण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर | |
छिन में बिजली सी कडक उठी, जालिम की उंची खडग उठी
मां मां मां मां की चीख उठी, नन्ही सी काया तडप उठी | |
शोणित से सनी सिसक निकली, लोहू पी नागन शांत हुई
इक नन्हा जीवन दीप बुझा, इका गाथा करूण दुखांत हुई | |
जबसे धरती पर मां जनमी, जब से मां नें बेटे जनमें
एसी मिसाल कुर्बानी की, देखी ना गई जन जीवन में | |
तू पूण्यमयी, तू धर्ममयी, तू त्याग तपस्या की देवी
धरती के सब हीरे पन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवीं | |
तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गई
तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर ह्दय लुटाना सिखा गई | |
में पन्ना दाई गुर्जर की हिम्मत, साहस, और बलिदान को सतत नमन करता हु जिन्होंने अपनी हिम्मत, साहस, और बलिदान से गुर्जर समाज और अपने धर्म का नाम रोशन किया है ये गुर्जर की बेटी जिस पर हमें नाज़ है
आपका
चौधरी जितेन्द्र अच्छवान गुर्जर
Email : jitender.gurjar@yahoo.com & mihirbhojnayidishagrup@gmail.com
चौधरी जितेन्द्र अच्छवान गुर्जर
Email : jitender.gurjar@yahoo.com & mihirbhojnayidishagrup@gmail.com
गुर्जर समाज की
और बेटियों की कहानी आगे भी जरी रहेगी
...... थोडा
सो
इंतजार
कीजिये
..
Please don't spread mis-information about Gujjars. Panna Dhai was a Rajput and at the time of Rana Sanga Udai Pur was ruled by Gujjar ruler Udai Singh Nagari who advanced to Khanwa with 12000 of his cavaliers to take battle with Babar and sacrificed his life.
ReplyDeleteUdai Pur is named after Gujjar Parmar ruler Udai Singh of Mandu, the descedent of Raja Bhoj.
AP Singh
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