MIHIR BHOJ NAYI DISHA GROUP
MIHIR BHOJ NAYI DISHA GROUP is an Organization such as selfless youths who want to serve the society? This group is a non-political organization. And working as a non-government organization, Group provide free computer education free Competition books library, for poor and promising young students. Time to time organize the games, and Sensitize the youth against the evils of our society.
24/05/2012
22/05/2012
क्यों मार रहे हैं बेटियों को ?
PANKAJ GURJAR (JAIPUR RAJSTHAN) |
जयपुर के जनाना अस्पताल में बच्ची को जन्म देने वाले मां - बाप डाइपर और टेलकम पाउडर के साथ अस्पताल में ही लावारिस छोड़कर चले गए. राजस्थान के ही जोधपुर में एक नवजात 10 बच्ची दिन तक मां के दूध के लिए इसलिए तरसती रही क्योंकि अस्पताल में बच्चा बदलने की भूल हो गई. जिसे लड़की हुई उसे अस्पताल वालों ने लड़का दे दिया और जिसे लड़का हुआ था उसे लड़की दे दी. बाद में जब अस्पताल वालों ने गलती दुरुस्त करनी चाही तो लड़का ले चुके दंपत्ति ने बेटी को लेने से मना कर दिया. डीएनए टेस्ट और कोर्ट की दखल के बाद ही बच्ची को मां की गोद नसीब हो सकी.
पश्चिम बंगाल के दुर्गपुर में समद 13 ने अप्रैल को अपनी पत्नी अहीमा को इसलिए मार डाला, क्योंकि उसे यह आभास था कि चौथी बार भी वह बेटी का बाप बनेगा. अहीमा को सात माह का गर्भ था. इतना ही नहीं उसने अपनी पहली तीन बेटियों को भी जहर देकर मौत की नींद सुला दिया. इससे पहले बेंगलुरू में तीन माह की मासूम नेहा आफरीन को उसके पिता ने ही न केवल दीवार पर पटक कर मारा बल्कि उसे सिगरेट से भी दागा. आफरीन की मौत हो गई.ऐसा कोई दिन नहीं बीत रहा जब बेटियों को लेकर दिल दहला देने वाली इस तरह की घटनाएं सामने नहीं आ रही हों. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे देशभर में बेटियों को खत्म करने का अभियान सा चल रहा हो.
डोली में बिठाकर बेटी की विदाई पर आंसू बहाने वाले मां - बाप इतने निर्दयी और कठोर भी हो सकते हैं ये कल्पना से परे है. अगर ऐसा ही हमारे पूर्वजों ने किया होता तो क्या हम अपनी मां के गर्भ से कभी जन्म ले पाते? या हम जिस तरह से बेटों की चाहत रख रहे हैं, बेटियों को मारकर क्या कभी उसे पूरा कर पाएंगे.
जब बेटियां ही नहीं रहेंगी तो शादी किससे करेंगे? शादी नहीं होगी तो फिर बेटे भी कहां से आएंगे. सभी जानते हैं कि देशभर में लिंगानुपात तेजी से घट रहा है. समाज में आज भी लड़कियों की कमी महसूस की जा रही है. उसके बावजूद बेटियों के साथ हमारा यह दुर्व्यवहार.
क्यों मार रहे हैं बेटियों को ?
जब बेटियां ही नहीं रहेंगी तो शादी किससे करेंगे? शादी नहीं होगी तो फिर बेटे भी कहां से आएंगे. सभी जानते हैं कि देशभर में लिंगानुपात तेजी से घट रहा है. समाज में आज भी लड़कियों की कमी महसूस की जा रही है. उसके बावजूद बेटियों के साथ हमारा यह दुर्व्यवहार.
क्यों मार रहे हैं बेटियों को ?
आज भी लोग इस पुरातनपंथी सोच को ढो रहे हैं कि बेटे बड़े होकर उनका भरण पोषण करेंगे औऱ बेटी शादी करके ससुराल चली जाएगी. उस पर से महंगाई की मार. शादी का खर्च इतना भारी भरकम है कि लोगों को लगता है कि जन्मते ही मार देना उससे कहीं ठीक है. ये बात इतर है कि लड़कों की शादी में भी खर्च कम नहीं आता पर हम लोगों की सोच में कहीं न कहीं ये गहरे बैठ गया है कि लड़कियां यानी कि ज्यादा खर्च.
ऐसे बचायी जा सकती हैं बेटियां
बेटियो को बचाने के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. हालांकि सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने, दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए कई कानून बना रखे हैं. लेकिन ये कहीं न कहीं नाकाफी साबित हो रहे हैं. वहीं बेटियों को मारने को भी अति गंभीर अपराध मानते हुए ऐसा करने वालों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया जा सकता. यह भी तो मानव वध ही है. इसके अलावा बेटियों की नौकरी लगने तक की सारी शिक्षा को मुफ्त किया जाना चाहिए.
ऐसे बचायी जा सकती हैं बेटियां
बेटियो को बचाने के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. हालांकि सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने, दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए कई कानून बना रखे हैं. लेकिन ये कहीं न कहीं नाकाफी साबित हो रहे हैं. वहीं बेटियों को मारने को भी अति गंभीर अपराध मानते हुए ऐसा करने वालों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया जा सकता. यह भी तो मानव वध ही है. इसके अलावा बेटियों की नौकरी लगने तक की सारी शिक्षा को मुफ्त किया जाना चाहिए.
पिता की संपत्ति में अगर बेटी को हिस्सा दिया जा सकता है तो उस पर बेसहारा मां - बाप की देखभाल की जिम्मेदारी भी डालनी चाहिए. अभी बेटियां बेसहारा मां - बाप की सेवा तो करना चाहती हैं, लेकिन ससुराल पक्ष के कारण कई बार वे चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर पातीं. सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण में संशोधन करके इसे महिला और पुरुष दोनों के लिए बराबर किया जाना चाहिए. नौकरियों में और चुनाव लड़ने के लिए जब दो से ज्यादा संतान न होने का कानून बनाया जा सकता है तो यह भी प्रावधान हो कि उसके कम से कम एक बेटी अवश्य हो. ऐसे दंपत्ति जिनके केवल एक बेटी है और आगे संतानोत्पत्ति न करने का संकल्प लिया है, उन्हें रोल मॉडल के रूप में समाज में पेश किया जाना चाहिए. ऐसे दंपत्तियों को मुफ्त मकान, सरकारी नौकरी, बेटी की मुफ्त शिक्षा जैसे प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए. तब शायद हम समाज का नजरिया बदलने में कुछ कामयाब हो सकें.
आज समाज में
कन्या हत्या के खिलाप हम सभी को जागरूक होना पड़ेगा और लोगो को जागरूक करना
पड़ेगा तब जाकर हम समाज में फेली इस कुपर्था को खत्म कर पाएंगे
आपका
Email:- jitender.gurjar@yahoo.com & mihirbhojnayidishagroup@gmail.com
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