: yiiX1RA5bZrmoXYgkLvmMW-Ywi0 MIHIR BHOJ NAYI DISHA GROUP: May 2012

24/05/2012

GURJAR M.L.A 2012

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान सहित पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावो  में 9 गुर्जर प्रत्याशी चुनावी जंग में सफल रहे, गत महीने विभिन्न चरणों में हुए चुनावो के  परिणाम 5 मार्च को घोषित किये गए, घोषित परिणामो के अनुसार उत्तर प्रदेश 7 में पंजाब और उत्तराखंड में 1-1 गुर्जर प्रत्याशी विजयी हुए, उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी समजवादी पार्टी से एक भी गुर्जर नेता चुनाव नहीं जीत पाया, यहा बहुजन समाज पार्टी से एक तीन 1.बेदराम भाटी जेवर विधान सभा सीट 9500 से मतों से चुनाव जीते,  2 :सतबीर गुर्जर दादरी विधान सभा सीट 37,297 से मतों से चुनाव जीते, 3: हेमलता चौधरी बागपत विधान सभा सीट से 7 , 633 मतों से चुनाव जीती, भारतीय जनता पार्टी से  दो 1: हुकम सिंह गुर्जर केराना विधान सभा सीट 19,545 से मतों से चुनाव जीते  2: रविन्द्र भडाना मेरठ दक्षिण विधान सभा सीट से  चुनाव जीते कांग्रेस से एक प्रदीप चौधरी ने गंगोह विधान सभा सीट से और राष्ट्रीय लोक दल के लिए करतार सिंह भडाना ने खातोली विधान सभा सीट 5875 से मतों से जीत हासिल की उधर पंजाब की बालाचोर विधान सभा सीट से अकाली दल के गुर्जर प्रत्याशी चौधरी नंदराम १४,८५७ ने मतों से सफलता हासिल की और चोथी बार विधावक बने, इसी प्रकार उत्तराखंड की खानपुर सीट से कांग्रेस गुर्जर प्रत्याशी कुवर प्रणव सिंह दूसरी बार विधायक बनने में सफल रहे 

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान सहित पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावो के परिणामो को देखकर लगता है की अभी हमें और ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है हमारी गुर्जर जाती ने हजारो साल देश पर राज किया है और हमारे अन्दर देश को चलाने की क़ाबलियत भी है आज जहा सरकार हमारी मांगो को अनसुना कर देती है जब हमारी राजनितिक स्थिति मजबूत होगी तो सरकार को भी हमारी बातें सुननी पड़ेगी, हमें सिक्षा के साथ साथ राजनेतिक स्थिति के बारे में भी सोचना होगा .... हमें अपने निहित स्वार्थो से ऊपर उठकर गुर्जर समाज की राजनेतिक स्तिथि के बारे में विचार करना होगा ..... तभी गुर्जर समाज को सफलता मिल सकती है आज अगर गुर्जर समाज में फुट होती और सही नज़रिए से गुर्जर समाज को स्रोव्परी मानकर चुनाओ में भाग लिया जाता तो आज परिणाम 9 शायद विधावको से कही जयादा होते .... मुझे पूरी उम्मीद है की आने वाले समय में हमारे गुर्जर समाज की राजनितिक स्थिति में जरुर सुधार होगा,,,, हमें पूरी उम्मीद है की चुने गए विधायक पूरी मेहनत और लगन से कार्य करके अपना और गुर्जर समाज का नाम रोशन करेंगे

आपका 

चौधरी  जितेन्द्र  अछ्वान गुर्जर 

Email:- jitender.gurjar@yahoo.com

         mihirbhojnayidishagroup@gmail.com



 

22/05/2012

क्यों मार रहे हैं बेटियों को ?

PANKAJ GURJAR (JAIPUR RAJSTHAN)

जयपुर के जनाना अस्पताल में बच्ची को जन्म देने वाले मां - बाप डाइपर और टेलकम पाउडर के साथ अस्पताल में ही लावारिस छोड़कर चले गए. राजस्थान के ही जोधपुर में एक नवजात 10 बच्ची दिन तक मां के दूध के लिए इसलिए तरसती रही क्योंकि अस्पताल में बच्चा बदलने की भूल हो गई. जिसे लड़की हुई उसे अस्पताल वालों ने लड़का दे दिया और जिसे लड़का हुआ था उसे लड़की दे दी. बाद में जब अस्पताल वालों ने गलती दुरुस्त करनी चाही तो लड़का ले चुके दंपत्ति ने बेटी को लेने से मना कर दिया. डीएनए टेस्ट और कोर्ट की दखल के बाद ही बच्ची को मां की गोद नसीब हो सकी.
पश्चिम बंगाल के दुर्गपुर में समद 13 ने अप्रैल को अपनी पत्नी अहीमा को इसलिए मार डाला, क्योंकि उसे यह आभास था कि चौथी बार भी वह बेटी का बाप बनेगा. अहीमा को सात माह का गर्भ था. इतना ही नहीं उसने अपनी पहली तीन बेटियों को भी जहर देकर मौत की नींद सुला दिया. इससे पहले बेंगलुरू में तीन माह की मासूम नेहा आफरीन को उसके पिता ने ही केवल दीवार पर पटक कर मारा बल्कि उसे सिगरेट से भी दागा. आफरीन की मौत हो गई.ऐसा कोई दिन नहीं बीत रहा जब बेटियों को लेकर दिल दहला देने वाली इस तरह की घटनाएं सामने नहीं रही हों. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे देशभर में बेटियों को खत्म करने का अभियान सा चल रहा हो.


डोली में बिठाकर बेटी की विदाई पर आंसू बहाने वाले मां - बाप इतने निर्दयी और कठोर भी हो सकते हैं ये कल्पना से परे है. अगर ऐसा ही हमारे पूर्वजों ने किया होता तो क्या हम अपनी मां के गर्भ से कभी जन्म ले पाते? या हम जिस तरह से बेटों की चाहत रख रहे हैं, बेटियों को मारकर क्या कभी उसे पूरा कर पाएंगे.
जब बेटियां ही नहीं रहेंगी तो शादी किससे करेंगे? शादी नहीं होगी तो फिर बेटे भी कहां से आएंगे. सभी जानते हैं कि देशभर में लिंगानुपात तेजी से घट रहा है. समाज में आज भी लड़कियों की कमी महसूस की जा रही है. उसके बावजूद बेटियों के साथ हमारा यह दुर्व्यवहार.
क्यों मार रहे हैं बेटियों को ?

आज भी लोग इस पुरातनपंथी सोच को ढो रहे हैं कि बेटे बड़े होकर उनका भरण पोषण करेंगे औऱ बेटी शादी करके ससुराल चली जाएगी. उस पर से महंगाई की मार. शादी का खर्च इतना भारी भरकम है कि लोगों को लगता है कि जन्मते ही मार देना उससे कहीं ठीक है. ये बात इतर है कि लड़कों की शादी में भी खर्च कम नहीं आता पर हम लोगों की सोच में कहीं कहीं ये गहरे बैठ गया है कि लड़कियां यानी कि ज्यादा खर्च.
ऐसे बचायी जा सकती हैं बेटियां
बेटियो को बचाने के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. हालांकि सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने, दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए कई कानून बना रखे हैं. लेकिन ये कहीं कहीं नाकाफी साबित हो रहे हैं. वहीं बेटियों को मारने को भी अति गंभीर अपराध मानते हुए ऐसा करने वालों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया जा सकता. यह भी तो मानव वध ही है. इसके अलावा बेटियों की नौकरी लगने तक की सारी शिक्षा को  मुफ्त किया जाना चाहिए.
  


पिता की संपत्ति में अगर बेटी को हिस्सा दिया जा सकता है तो उस पर बेसहारा मां - बाप की देखभाल की जिम्मेदारी भी डालनी चाहिए. अभी बेटियां बेसहारा मां - बाप की सेवा तो करना चाहती हैं, लेकिन ससुराल पक्ष के कारण कई बार वे चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर पातीं. सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण में संशोधन करके इसे महिला और पुरुष दोनों के लिए बराबर किया जाना चाहिए. नौकरियों में और चुनाव लड़ने के लिए जब दो से ज्यादा संतान होने का कानून बनाया जा सकता है तो यह भी प्रावधान हो कि उसके कम से कम एक बेटी अवश्य हो. ऐसे दंपत्ति जिनके केवल एक बेटी है और आगे संतानोत्पत्ति करने का संकल्प लिया है, उन्हें रोल मॉडल के रूप में समाज में पेश किया जाना चाहिए. ऐसे दंपत्तियों को मुफ्त मकान, सरकारी नौकरी, बेटी की मुफ्त शिक्षा जैसे प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए. तब शायद हम समाज का नजरिया बदलने में कुछ कामयाब हो सकें.
आज समाज में कन्या हत्या के खिलाप हम सभी को जागरूक होना पड़ेगा और लोगो को जागरूक करना पड़ेगा तब जाकर हम समाज में फेली इस कुपर्था को खत्म कर पाएंगे
 
आपका

चौधरी  जितेन्द्र 
अछ्वान गुर्जर और श्री पंकज गुर्जर के सहयोग से
Email:- jitender.gurjar@yahoo.com & mihirbhojnayidishagroup@gmail.com